सोमवार, १८ जून, २०१८

नवविधा भक्तीमधिल अग्रगण्य होऊन गेलेले भक्त


नवविधा भक्तीमधिल अग्रगण्य होऊन गेलेले भक्त


     शुकासारिखे  पूर्ण वैराग्य ज्याचे। 
     वसिष्टापरी ज्ञान योगेश्वराचे।।
     कवी वाल्मिकासारिखा मान्य ऐसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रामदासा।।१।।
     उपदेस ज्याला असे राघवाचा। 
     श्रवणी जसा गुण परिक्षितीचा।।
     विवेकी विरागी जगी पूर्ण तैसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रासदासा।।२।।
     करी किर्तने नारदासारखाची। 
     कदर्यूपरी शांती ज्याचे सुखाची।।
     जया वाटते कांचनू केर जैसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रामदासा।।३।।
     स्मरणी जसा शंकर की प्रल्हाद। 
     चकोरापरी आठवी रामचंद्र।।
     रमा सेवी पादांबुजे जाण तैसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रामदासा।।४।।
     पृथुसारिखा अर्चनी वाटताहे। 
     खरा अक्रूरा सम वंदिताहे।।
     नसे गर्व काही अणूमात्र ऐसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रामदासा।।५।।
     खरी भक्ती हो त्या जगी मारुतिची। 
     असे रामदासा परी मारुतिची।।
     नसे भेद दोघां जळी गार जैसा। 
     नमस्कार माझा तया रामदासा।।६।।
     जये अर्जुनासारिखे सख्य केले। 
     मुळीहूनिया द्वैत नि:शेष केले।।
     सितानायकू दृढ केला कुवासा। 
     नमस्कार माझा तया रामदासा।।७।।
     बळी आत्मनिवेदनी पूर्ण झाला। 
     विदेहीपणे दास तैसा मिळाला।
     म्हणे उध्दवसुत वर्णू मी कैसा। 
     नमस्कार माझा सद्गुरु रामदासा।।८।।   


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