।। श्रीराम समर्थ ।।
मानसपूजा
ह्रदयमंदीरी मनोभावने
करीतो तव पूजा।
गोड करावी थोर
मनाने श्रीगुरु महाराजा।।
आवाहन वा अर्चन
पूजन मजला ना माहिती।
या बाळाची
मानसपूजा प्रभो करा स्विकृती।।१।।
सर्वोत्तम
मंदिरा बनवुनी, सुंदर ते सजवीले।
नम्रपणाने
गुरुरायाला मनोमनी अर्पिले।।
रत्नजडित चौरंगी
बसवुनी चरणा प्रक्षाळिले।
सुशितळ जल
पिण्या देवुनी शेषपदी ठेवीले।।२।।
गंध सुगंधित तेल
लाऊनी स्नाना बैसविले।
समशितोष्ण जलासी
भरुनी तिर्थोदक घातले।।
केशरमिश्रीत
नव्या जलाने स्नान पूर्ण झाले।
शुभ्रवस्त्र ते
अंग पुसाया प्रेमभरे दिधले।।३।।
उत्तम वस्त्रा
नेसुनी श्रीजी सिंहासनी बैसले।
चरणी पादुका गंध
अक्षता भाळी लावियले।।
सुगंधित पुष्पा गुंफूनिया
हारा गळा घातले।
गंध अत्तरा फुले
घेऊनी पाद्यपूजन केले।।४।।
धुप दिप नैवेद्य
अंशत:
गुरुदेवा अर्पिले।
चरणावरती ठेवुनी
माथा तन मन हे दिधले।।
देवा काही चुकले
मुकले क्षमा करा नाथा।
दीनाकडचे भोजन
घ्यावे गोड करुनी आता।।५।।
भक्ष्य भोज्य
पक्वान्न वाढुनी ताट स्वये आणिले।
चौरंगावर सुवर्ण
कलशा जवळी ते ठेवीले।।
करद्वया जोडूनी
प्रार्थिले जेवा गुरुमाऊली।
नाम घेत मी चवरी
ढाळीत शांत उभा जवळी।।६।।
हस्त मुख
प्रक्षालन करुनी सिंहासनी नेले।
केशर कस्तुरी
मिश्रित उत्तम तांबुल अर्पियले।।
सिंहासनी महाराज
स्वस्थसे मी चरणापासी।
बैसुनी केले
आत्मनिवेदन जैसे वडिलांसी।।७।।
आरती करिता तव
तेजाने मन मोदे भरले।
साष्टांग
प्रणिपात करोनी सर्वस्वा अर्पिले।।
शरणागत या
बाळावरती येऊ द्या करुणा।
पोटाशी त्या धरा
एकदा हीच प्रभो प्रार्थना।।८।।
यावर बाळा वदे
माऊली हस्त शिरी ठेविले।
घ्या विश्रामा
ह्रदय मंदिरी स्वानंदे प्रार्थिले।।
घ्या विश्रामा
ह्रदय मंदिरी स्वानंदे प्रार्थिले।
घ्या विश्रामा
ह्रदय मंदिरी स्वानंदे प्रार्थिले।।
।। जय जय रघुवीर समर्थ ।।